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रावन कुंभकरण थे भगवान विष्णु जी के द्वारपाल
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भगवतगीता अध्याय पहला हिंदी में
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तरावली माता (जिनका सर उज्जैन में , चरण कशी में , धड़ भोपाल में है )
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कृष्णाबाई मंदिर
महाबलेश्वर का कृष्णाबाई मंदिर: एक अद्भुत धरोहर महाबलेश्वर, जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित है, अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित कृष्णाबाई मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और अपनी अनूठी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के कारण यह पर्यटकों और भक्तों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर का निर्माण और महत्व कृष्णाबाई मंदिर का निर्माण 1888 में किया गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, लेकिन यहां भगवान कृष्ण की मूर्ति भी स्थापित है। यह मंदिर कृष्णा नदी का प्रमुख स्त्रोत माना जाता है। मंदिर के आंगन में एक गाय के मुख के आकार की टोंटी है, जिससे पानी बहता है और यह पानी सीधे कृष्णा नदी में मिल जाता है। यह धार्मिक और प्राकृतिक स्रोत एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है। अद्वितीय वास्तुकला मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है और इसमें शिवलिंगम, पत्थर से बनी छतें और स्तंभ शामिल हैं। इनकी सुंदरता और शिल्प कौशल अद्वितीय हैं और यह मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाते हैं। मंदिर की छतें और स्तंभ न केवल स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं बल्कि प्राचीन भारतीय शिल्पकारों की अद्वितीय कला का प्रमाण भी हैं। प्राकृतिक सौंदर्य और शांतिnकृष्णाबाई मंदिर का स्थान अपने प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर से आसपास की घाटियों और हरियाली के मनोहारी दृश्य देखे जा सकते हैं। यहां का शांत और सुंदर वातावरण पर्यटकों और भक्तों को मानसिक शांति और ताजगी प्रदान करता है धरती में समाता मंदिर कृष्णाबाई मंदिर के बारे में एक विशेष तथ्य यह है कि ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर धीरे-धीरे धरती में समाता जा रहा है। यह तथ्य मंदिर को और भी रहस्यमयी और आकर्षक बनाता है। निष्कर्ष कृष्णाबाई मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटक स्थल है। यहां की अनूठी वास्तुकला, प्राकृतिक सौंदर्य, और धार्मिक महत्व इसे एक विशेष स्थान बनाते हैं। अगर आप महाबलेश्वर की यात्रा पर जा रहे हैं, तो कृष्णाबाई मंदिर को अपनी यात्रा सूची में अवश्य शामिल करें।
नर्मदा नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है, जो अपनी अद्वितीय प्रवाह दिशा और पौराणिक महत्त्व के लिए जानी जाती है। यह नदी मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों से होते हुए अरब सागर में मिलती है। इसके प्रवाह की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर है, जबकि अधिकांश भारतीय नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। आइए, इसके बारे में विस्तार से जानें।
पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ
नर्मदा नदी के उल्टी बहने के पीछे कई प्राचीन कथाएँ और पौराणिक कहानियाँ हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा के अनुसार:
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कथाएँ: नर्मदा नदी को गंगा नदी से भी पवित्र माना गया है। कहते हैं कि जो पुण्य गंगा स्नान से प्राप्त होता है, वह केवल नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा, नर्मदा नदी से निकला हर पत्थर शिवलिंग माना जाता है, जिसे लोग धार्मिक रूप में पूजते हैं।
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धार्मिक महत्त्व: नर्मदा नदी को धार्मिक ग्रंथों में रेवा भी कहा गया है। इसका उल्लेख महाभारत, रामायण, और पुराणों में मिलता है।
भूगोल और प्राकृतिक विशेषताएँ
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प्रवाह मार्ग: नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर गुजरात के खंभात की खाड़ी में गिरती है। इसका प्रवाह विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से होता है।
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टेक्टोनिक रिफ्ट वैली: यह नदी टेक्टोनिक रिफ्ट वैली के अंदर बहती है, जो इसका प्राकृतिक मार्ग है पश्चिम दिशा में। इस प्रकार की घाटियाँ पृथ्वी की परतों के टूटने और खिसकने से बनती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
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महाभारत और रामायण में उल्लेख: नर्मदा नदी का उल्लेख महाभारत, रामायण और पुराणों में मिलता है। यह नदी भारतीय संस्कृति और धर्म में गहरे रूप में स्थापित है।
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शिवलिंग: नर्मदा नदी से निकले पत्थरों को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। इन पत्थरों को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है।
नर्मदा नदी न केवल एक प्राकृतिक धरोहर है, बल्कि यह धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका प्रवाह और महत्त्व भारतीय जनमानस में गहरे रूप से बसा हुआ है। यह नदी भारत की आध्यात्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वृन्दावन का टटिया स्थान
टटिया स्थान, वृंदावन एक दिव्य और रमणीय स्थान है जो प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह स्थान विशेष रूप से श्री राधा और श्री कृष्ण को समर्पित है और स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है।
स्वामी हरिदास और टटिया स्थान का इतिहास
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स्वामी हरिदास जी: स्वामी हरिदास जी इस सम्प्रदाय के सातवें आचार्य थे और उन्होंने इस स्थान को अपना निवास बनाया था। उन्होंने इस क्षेत्र को बांस की छड़ियों से घेरा था, जिसे स्थानीय भाषा में “टटिया” कहते हैं, और इसीलिए इस स्थान का नाम टटिया स्थान पड़ा।
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आध्यात्मिकता और पवित्रता: यह स्थान श्री राधा और श्री कृष्ण को समर्पित है और यहाँ की पवित्रता, दिव्यता और शांति अद्वितीय है।
प्राकृतिक सौंदर्य
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वृक्षों की विविधता: इस स्थान पर नीम, पीपल और कदम्ब जैसे विभिन्न प्रकार के पेड़ हैं, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं और पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखते हैं।
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आधुनिकता से अछूता: इस स्थान को तकनीकी और आधुनिकता से अछूता रखा गया है। यहाँ बिजली और अन्य आधुनिक सुविधाओं का उपयोग नहीं किया जाता है, जो इस स्थान की आध्यात्मिकता और शांति को बनाए रखने में मदद करता है।
स्थान और पहुँच
- स्थान: यह स्थान मथुरा रेलवे स्टेशन से लगभग 12.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके प्राकृतिक सौंदर्य के कारण भी यह एक विशेष स्थान है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
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धार्मिक आयोजनों का केंद्र: टटिया स्थान विभिन्न धार्मिक आयोजनों और उत्सवों का केंद्र है। यहाँ पर श्री राधा और श्री कृष्ण के भक्ति गीत और कीर्तन होते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।
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शांति और ध्यान का स्थल: यह स्थान ध्यान और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यहाँ की शांति और पवित्रता मन को शांति और आत्मिक अनुभव प्रदान करती है।
भगवान श्रीकृष्ण की सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियाँ
भगवान श्रीकृष्ण की सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियों की कथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है और इस कथा के पीछे एक महत्वपूर्ण घटना जुड़ी हुई है।
आठ प्रमुख पत्नियाँ
श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख पत्नियाँ थीं:
- रुक्मिणी: विदर्भ की राजकुमारी और श्रीकृष्ण की पहली पत्नी।
- जाम्बवती: जाम्बवान की पुत्री।
- सत्यभामा: सत्यजीत की पुत्री।
- कालिन्दी: सूर्यदेव की पुत्री।
- मित्रवृन्दा: वृन्दावन की एक प्रमुख गोपी।
- सत्या: नर राजा की पुत्री।
- भद्रा: कौरव वंश की राजकुमारी।
- लक्ष्मणा: मद्रदेश की राजकुमारी।
नरकासुर का वध और 16,100 कन्याओं का उद्धार
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नरकासुर का अत्याचार: नरकासुर नामक एक असुर ने सोलह हज़ार एक सौ कन्याओं को बंदी बना लिया था। उसकी क्रूरता और अत्याचार के कारण ये कन्याएँ कष्ट झेल रही थीं।
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श्रीकृष्ण का उद्धार: जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया, तो उन्होंने इन कन्याओं को मुक्त कर दिया।
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कन्याओं की प्रार्थना: इन कन्याओं ने समाज द्वारा स्वीकार न किए जाने के डर से श्रीकृष्ण से विवाह करने की प्रार्थना की। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें समाज में सम्मानित स्थान पाने के लिए उनकी मदद चाहिए।
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श्रीकृष्ण का निर्णय: श्रीकृष्ण ने उनकी मान-प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए इन सभी से विवाह किया, जिससे उन्हें समाज में सम्मानित स्थान मिल सके।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण की सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियाँ होने की कथा हमारे धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। यह कथा श्रीकृष्ण के दया, करुणा और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है।
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